दुसाध जाति बिहार की एक दलित जाति है इन्हें "अंत्यज जाति" में शुमार किया जाता है जिस को अनुसूचित जाति में संदर्भित किया जाता है दुसाध समाज बिहार में ताड़ी उतारने का काम करती है और साथ ही ताड़ी बेचती है दुसाध समाज में शिक्षा का स्तर कम है परंतु वर्तमान स्थिति में हालात थोड़े सुधारात्मक हैं इनका पारंपरिक पेशा ताड़ी उतारना रहा है
"अंग्रेजी समय काल में इनके हालात में सुधार हुआ अंग्रेजों ने इनको अपनी सेना में भर्ती कर प्लासी के युद्ध मे इस्तेमाल किया था " अंग्रेजों का यह पहला प्रयोग था निचली जातियों को सेना में भर्ती कर सेवाएं लेने का । बाद में इनकी सेवाएं लेना बंद कर दी गई ।
" दुसाध जाति " का अर्थ भाषाई दृष्टिकोण से कुछ विद्वानों द्वारा यह बतलाया गया है कि दुसाध दरअसल दुसाध ना होकर यह संस्कृत भाषा का दुसाध्य: से बना प्रतीत होता है जिसका अर्थ होता जिसे साधा ना जा सके
साध्य का तात्पर्य साधना होता है इसके आगे ` दु ` लग जाने से यह दुसाध भी हो जाता है अर्थात जिसे साधा ना जा सके जिसे पकड़ा ना जा सके जिसे बांधा ना जा सके वह दुसाध्य: है इसलिए इनके समूह के लोगों को चौकीदारी और गोड़ैत में रखा जाता था
दुसाध जाति का मुख्य पेशा ताड़ी उतारना, चौकीदारी, गुड़ाइत ,किसानी ताड़ी-उतारना , आदि रहा है
दुसाध लोग अक्सर अपने कुल देवता महाराज चौहरमल को मानते हैं इस समाज की कुछ पूजा आज भी जीवंत है जैसे आप पर चलना खोलते हुए दूध में हाथ डालकर चलाना और ईश्वर में विश्वास है आदि बहुत से परंपराएं देखने को मिल जाते हैं जो सभी को आश्चर्यचकित कर देते हैं वर्तमान समय में दुसाध जाति अपने विकास के मार्ग पर अग्रसर हैं ।
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